लेख का सारांश
यह लेख भारत के जलीय कृषि (Aquaculture) क्षेत्र में दो उभरती हुई प्रौद्योगिकियों – बायोफ्लोक टेक्नोलॉजी (BFT) और पुनर्चक्रण जलीय कृषि प्रणाली (RAS) – पर केंद्रित है। लेख बताता है कि भारत सरकार इन तकनीकों को सब्सिडी के माध्यम से बढ़ावा दे रही है, क्योंकि भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कृषि-आधारित मत्स्य उत्पादक है।
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बायोफ्लोक टेक्नोलॉजी (BFT) एक स्थायी तरीका है जिसमें सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके मछली के अपशिष्ट को ही पोषक तत्वों से भरपूर भोजन (बायोफ्लोक) में बदल दिया जाता है। यह कम लागत वाला, छोटे किसानों के लिए उपयुक्त और पर्यावरण के अनुकूल है, लेकिन इसमें निरंतर निगरानी और उच्च प्रारंभिक निवेश की आवश्यकता होती है।
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पुनर्चक्रण जलीय कृषि प्रणाली (RAS) एक इनडोर तकनीक है जिसमें पानी को फिल्टर करके बार-बार इस्तेमाल किया जाता है। यह एक नियंत्रित वातावरण प्रदान करती है, जिससे रोग का खतरा कम होता है और यह उन क्षेत्रों के लिए आदर्श है जहाँ पानी की कमी है। हालाँकि, इसकी स्थापना और संचालन लागत बहुत अधिक है और इसके लिए निरंतर बिजली और कुशल श्रम की आवश्यकता होती है।
दोनों प्रौद्योगिकियाँ जलीय कृषि को अधिक टिकाऊ और उत्पादक बनाने की क्षमता रखती हैं, लेकिन उनकी अपनी-अपनी चुनौतियाँ भी हैं।
मुख्य बिंदु (Key Points)
सामान्य संदर्भ
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बढ़ती स्वीकृति: भारत में BFT और RAS जैसी आधुनिक जलीय कृषि प्रौद्योगिकियों को तेजी से अपनाया जा रहा है।
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सरकारी समर्थन: मत्स्य पालन विभाग इन तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सब्सिडी प्रदान कर रहा है।
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भारत की स्थिति: भारत विश्व में (चीन के बाद) दूसरा सबसे बड़ा कृषि-आधारित मत्स्य उत्पादक है, जो देश की खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
1. बायोफ्लोक टेक्नोलॉजी (Biofloc Technology – BFT)
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सिद्धांत: यह सूक्ष्मजीवों (लाभकारी बैक्टीरिया) का उपयोग करके पानी में मौजूद मछली के अपशिष्ट और बचे हुए चारे को प्रोटीन युक्त “बायोफ्लोक” में बदल देती है, जिसे मछलियाँ दोबारा भोजन के रूप में खा सकती हैं।
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कार्यप्रणाली:
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टैंक में सशक्त वातन (Vigorous Aeration) द्वारा ऑक्सीजन का स्तर बनाए रखा जाता है।
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कार्बन और नाइट्रोजन के अनुपात को संतुलित रखा जाता है ताकि बैक्टीरिया अपशिष्ट को भोजन में बदल सकें।
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लाभ (Pros):
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सतत (Sustainable): पानी और चारे की बर्बादी कम होती है।
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लागत प्रभावी: मछली के चारे पर होने वाला खर्च कम हो जाता है।
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पर्यावरण अनुकूल: रसायनों और एंटीबायोटिक्स का उपयोग घटता है।
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छोटे किसानों के लिए उपयुक्त: कम जगह में भी इसे स्थापित किया जा सकता है।
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चुनौतियाँ (Cons):
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उच्च प्रारंभिक निवेश: सेटअप के लिए लगभग ₹4-5 लाख की लागत आती है।
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तकनीकी निगरानी: कार्बन-नाइट्रोजन अनुपात और फ्लोक के स्तर की लगातार जाँच आवश्यक है।
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प्रजाति सीमा: सभी मछलियों के लिए उपयुक्त नहीं; उत्तरी क्षेत्रों में रोहू और कतला जैसी भारतीय कार्प का पालन इसमें मुश्किल है।
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2. पुनर्चक्रण जलीय कृषि प्रणालियाँ (Recirculating Aquaculture Systems – RAS)
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सिद्धांत: यह एक बंद प्रणाली है जिसमें पानी को टैंक से निकालकर, फिल्टर करके और साफ करके वापस उसी टैंक में पुनर्चक्रित (Recycle) किया जाता है।
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कार्यप्रणाली:
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यांत्रिक फिल्टर (Mechanical Filter) ठोस अपशिष्ट को हटाते हैं।
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जैविक फिल्टर (Biological Filter) अमोनिया जैसे हानिकारक घुले हुए पदार्थों को तोड़ते हैं।
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तापमान, ऑक्सीजन और स्वच्छता को नियंत्रित किया जाता है।
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लाभ (Pros):
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उच्च जैव सुरक्षा: बंद प्रणाली होने के कारण बीमारियों का खतरा बहुत कम होता है।
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पानी की बचत: 90-99% तक पानी का पुन: उपयोग होता है, जो पानी की कमी वाले क्षेत्रों के लिए वरदान है।
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स्थान निरपेक्ष: इसे कहीं भी (इनडोर) स्थापित किया जा सकता है।
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नियंत्रित उत्पादन: मौसम पर निर्भरता नहीं होती।
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चुनौतियाँ (Cons):
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अत्यधिक उच्च लागत: इसकी स्थापना और संचालन लागत बहुत ज़्यादा है।
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ऊर्जा पर निर्भरता: निरंतर बिजली की आपूर्ति और बैकअप सिस्टम अनिवार्य हैं।
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कुशल श्रम: इसके संचालन और रखरखाव के लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों की आवश्यकता होती है।
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BFT और RAS का तुलनात्मक विश्लेषण
मापदंड | बायोफ्लोक टेक्नोलॉजी (BFT) | पुनर्चक्रण जलीय कृषि प्रणाली (RAS) |
मूल सिद्धांत | अपशिष्ट को भोजन में बदलना | पानी को साफ करके पुन: उपयोग करना |
जल उपयोग | पानी का कम बदलाव | 90-99% जल का पुनर्चक्रण |
स्थान | आउटडोर/इनडोर (छोटे टैंक) | मुख्य रूप से इनडोर |
प्रारंभिक लागत | मध्यम से उच्च (₹4-5 लाख) | बहुत उच्च |
परिचालन लागत | मध्यम | उच्च (बिजली और रखरखाव) |
मुख्य आवश्यकता | वातन, C:N अनुपात की निगरानी | निरंतर बिजली, कुशल श्रम, फिल्टर |
सबसे बड़ा लाभ | कम चारे की लागत, स्थिरता | जल संरक्षण, उच्च जैव सुरक्षा |
सबसे बड़ी चुनौती | निरंतर निगरानी, सीमित प्रजातियाँ | अत्यधिक लागत, बिजली पर निर्भरता |