भारत की चक्रीय क्रांति

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कचरे से कंचन: G20 की अध्यक्षता में भारत दिखा रहा चक्रीय अर्थव्यवस्था की नई राह!

प्राकृतिक संसाधनों पर हमारी बढ़ती निर्भरता और निरंतर उत्पन्न हो रहे कचरे के पहाड़ों के बीच, संसाधन दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकोनॉमी) जैसी प्रभावशाली रणनीतियाँ एक स्थायी भविष्य की कुंजी बनकर उभरी हैं। भारत, अपनी G20 अध्यक्षता के तहत, इस वैश्विक बदलाव का नेतृत्व करते हुए ‘टेक-मेक-डिस्पोज’ के पुराने ढर्रे को ‘रिड्यूस-रीयूज-रीसायकल’ के प्रगतिशील मॉडल में बदलने पर जोर दे रहा है। यह कदम न केवल सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को साकार करने में मदद करेगा, बल्कि आर्थिक विकास को संसाधन उपयोग से अलग कर एक नए युग का सूत्रपात भी करेगा।

G20 में भारत की प्राथमिकता: चक्रीय अर्थव्यवस्था

भारत ने G20 फोरम में विचार-विमर्श के लिए ‘संसाधन दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था’ को तीन मुख्य विषयों में से एक के रूप में प्राथमिकता दी है। इसके तहत चार प्रमुख क्षेत्रों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया है:

  1. इस्पात क्षेत्र में चक्रीयता: औद्योगिक विकास की रीढ़ इस्पात क्षेत्र में चक्रीयता को बढ़ावा देना।

  2. विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR): उत्पादकों को उनके उत्पादों के पूरे जीवनचक्र के लिए जिम्मेदार बनाना।

  3. चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था: कृषि और जैविक कचरे को मूल्यवान संसाधनों में बदलना।

  4. उद्योग-आधारित गठबंधन: संसाधन दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था के लिए एक औद्योगिक गठबंधन स्थापित करना।

इस्पात क्षेत्र में क्रांति: चक्रीयता का महत्व

इस्पात, निर्माण से लेकर परिवहन तक हर क्षेत्र की नींव है। बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के साथ इस्पात की मांग भी बढ़ती है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों पर भारी दबाव पड़ता है। पारंपरिक उत्पादन तरीके न केवल अधिक संसाधन खपाते हैं बल्कि वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र के लगभग 7% उत्सर्जन के लिए भी जिम्मेदार हैं। चक्रीय अर्थव्यवस्था इस तस्वीर को बदल सकती है:

  • अपशिष्ट में कमी: यह इस्पात उद्योग में कचरे को न्यूनतम कर जिम्मेदार अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देगा।

  • सतत विकास को बढ़ावा: यह जिम्मेदार उपभोग, उत्पादन और जलवायु कार्रवाई जैसे SDGs को हासिल करने में सहायक होगा।

EPR: उत्पादकों की जिम्मेदारी, पर्यावरण की सुरक्षा

विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) एक ऐसी व्यवस्था है जो उत्पादकों को उनके उत्पादों के पर्यावरणीय प्रभाव के लिए, उत्पादन से लेकर निपटान तक, जिम्मेदार ठहराती है। भारत में इसकी शुरुआत 2011 के ई-अपशिष्ट नियमों से हुई थी। EPR चक्रीयता को निम्न प्रकार से बढ़ावा देता है:

  • इको-डिज़ाइन प्रोत्साहन: उत्पादकों को टिकाऊ, मरम्मत योग्य और पुन: प्रयोज्य उत्पाद बनाने के लिए प्रेरित करता है।

  • संसाधन संरक्षण: उत्पादकों द्वारा अपशिष्ट प्रबंधन लागत वहन करने से संसाधनों का कम उपयोग होता है।

  • पुनर्चक्रण को बढ़ावा: उत्पादक स्वयं पुनर्चक्रण बुनियादी ढांचे की स्थापना और समर्थन करते हैं।

  • ‘टेक-बैक’ कार्यक्रम: उपभोक्ता उपयोग किए गए उत्पादों को वापस कर सकते हैं, जिससे उचित निपटान या पुनर्चक्रण सुनिश्चित होता है।

चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था: प्रकृति के साथ सामंजस्य

चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था पौधों, शैवाल और कृषि अपशिष्ट जैसे नवीकरणीय जैविक संसाधनों का उपयोग करके जैव-आधारित उत्पाद और जैव-ऊर्जा बनाती है। इसके लाभ अनेक हैं:

  • जीवाश्म ईंधन पर कम निर्भरता: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी और जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद।

  • संसाधन दक्षता: एक प्रक्रिया का अपशिष्ट दूसरी के लिए संसाधन बन जाता है।

  • सतत कृषि और वानिकी: मृदा स्वास्थ्य में सुधार और हरित रोजगार का सृजन।

  • नवाचार को बढ़ावा: नई प्रौद्योगिकियों और जैव प्रसंस्करण विधियों में अनुसंधान को प्रोत्साहन। भारत सरकार प्रधानमंत्री जी-वन, गोबर धन और SATAT जैसी योजनाओं के माध्यम से इसे सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रही है।

चुनौतियाँ और आगे की राह

हालांकि चक्रीय अर्थव्यवस्था का मार्ग आशाजनक है, इसमें कुछ चुनौतियाँ भी हैं जैसे- पुनर्चक्रण के लिए उन्नत बुनियादी ढांचे और प्रौद्योगिकी की आवश्यकता, उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव लाना, प्रभावी नियामक ढाँचा तैयार करना और वित्तीय निवेश आकर्षित करना।

इन चुनौतियों से निपटने के लिए ठोस डेटा और सफल केस स्टडीज़ को शामिल करना, संभावित समाधानों पर काम करना, सभी हितधारकों (सरकार, उद्योग, विशेषज्ञ) के दृष्टिकोण को एकीकृत करना और एक स्पष्ट नीतिगत ढाँचा प्रदान करना महत्वपूर्ण होगा।

निष्कर्ष

भारत का G20 में चक्रीय अर्थव्यवस्था पर जोर यह दर्शाता है कि देश न केवल पर्यावरणीय चुनौतियों को गंभीरता से ले रहा है, बल्कि उनके समाधान के लिए विश्व का मार्गदर्शन करने को भी तैयार है। ‘कचरे से कंचन’ बनाने का यह प्रयास निस्संदेह एक अधिक सतत, समृद्ध और पर्यावरण-अनुकूल भविष्य की नींव रखेगा।


  अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के बारे में विचार करने के लिए यहां कुछ बिंदु दिए गए हैं।

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