भारत में तंबाकू महामारी: एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती
भारत, चीन के बाद दुनिया में तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है, जहाँ 25 करोड़ से अधिक लोग किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करते हैं।यह एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है, जिसके दूरगामी सामाजिक-आर्थिक परिणाम हैं। देश में हर साल तंबाकू से संबंधित बीमारियों के कारण 13 लाख से अधिक मौतें होती हैं।
तंबाकू की खपत के मौजूदा रुझान
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में तंबाकू के उपयोग में कमी आई है, लेकिन अभी भी यह एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। देश में लगभग 25.1 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करते हैं, जिनमें 7.5 करोड़ धूम्रपान करने वाले और शेष धुआं रहित तंबाकू का उपयोग करने वाले हैं।चिंताजनक बात यह है कि जहाँ पुरुषों में तंबाकू के सेवन में कमी देखी गई है, वहीं महिलाओं में इसके उपयोग में वृद्धि दर्ज की गई है।
आर्थिक बोझ और छिपी हुई लागत
तंबाकू का सेवन न केवल स्वास्थ्य पर भारी पड़ता है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी इसका गंभीर प्रभाव पड़ता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, तंबाकू के उपयोग से होने वाली बीमारियों और मौतों के कारण भारत को हर साल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 1% का नुकसान होता है। स्वास्थ्य सेवा पर होने वाला खर्च बहुत अधिक है और यह देश के स्वास्थ्य बजट से भी ज्यादा है।
इसके अलावा, तंबाकू की खेती से पर्यावरण को भी भारी नुकसान होता है, जिसमें मृदा क्षरण, वनों की कटाई और बड़े पैमाने पर अपशिष्ट उत्पादन शामिल है।
भारत सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास
भारत सरकार ने तंबाकू की महामारी से निपटने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं:
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अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता: भारत ने WHO के तंबाकू नियंत्रण पर फ्रेमवर्क कन्वेंशन (FCTC) पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर तंबाकू की खपत को कम करना है।
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राष्ट्रीय कानून: सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन का निषेध और व्यापार तथा वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति और वितरण का विनियमन) अधिनियम (COTPA), 2003 तंबाकू उत्पादों के विज्ञापन, प्रचार और बिक्री को नियंत्रित करने वाला एक प्रमुख कानून है।
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राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम (NTCP): 2007 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम COTPA के कार्यान्वयन को मजबूत करने और तंबाकू के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर केंद्रित है।
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ई-सिगरेट पर प्रतिबंध: इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट निषेध अधिनियम (PECA), 2019 के तहत भारत में ई-सिगरेट के उत्पादन, बिक्री और विज्ञापन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है।
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कराधान: सरकार ने तंबाकू उत्पादों पर करों में वृद्धि की है, हालांकि बीड़ी जैसे उत्पादों पर कर अभी भी अपेक्षाकृत कम है।
चुनौतियाँ और आगे की राह
इन प्रयासों के बावजूद, भारत में तंबाकू नियंत्रण के मार्ग में कई चुनौतियाँ हैं:
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गैर-अनुपालन और तस्करी: कई धूम्ररहित तंबाकू उत्पाद और तस्करी वाले सिगरेट नियमों के दायरे से बाहर हैं।
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सरोगेट विज्ञापन: तंबाकू कंपनियाँ अन्य उत्पादों की आड़ में अपने ब्रांड का प्रचार कर रही हैं, जिसे “सरोगेट विज्ञापन” कहा जाता है।
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सीमित प्रवर्तन: NTCP के पास देश भर में COTPA को पूरी तरह से लागू करने के लिए संसाधनों और कर्मचारियों की कमी है
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उद्योग का प्रभाव: तंबाकू उद्योग की प्रभावी लॉबिंग और सरकार के साथ हितों का टकराव भी एक बड़ी बाधा है।
आगे की राह:
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कानूनों को मजबूत करना: COTPA और NTCP को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए उनमें संशोधन और उन्हें अद्यतन करने की आवश्यकता है।
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करों में वृद्धि: सभी तंबाकू उत्पादों पर करों में उल्लेखनीय वृद्धि की जानी चाहिए, जैसा कि WHO द्वारा अनुशंसित है।
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प्रभावी निगरानी: तंबाकू की खपत के रुझानों पर नजर रखने और कानूनों के उल्लंघन को रोकने के लिए एक मजबूत निगरानी प्रणाली आवश्यक है।
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किसानों को समर्थन: तंबाकू की खेती करने वाले किसानों को वैकल्पिक फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित और समर्थित किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष रूप में, भारत में तंबाकू की महामारी एक जटिल समस्या है जिसके लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। कानूनों के सख्त कार्यान्वयन, करों में वृद्धि, और व्यापक जागरूकता अभियानों के माध्यम से ही इस सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट पर काबू पाया जा सकता है।