छत पर वर्षा जल संचयन टैंकों का अनिवार्य उपयोग

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वर्षा जल संचयन: महत्व, तकनीक, लाभ और हानि – एक विस्तृत सारांश

यह लेख वर्षा जल संचयन की अवधारणा, इसके महत्व, विभिन्न तकनीकों, लाभों, हानियों और भारत में इसकी स्थिति पर प्रकाश डालता है।

वर्षा जल संचयन क्या है?
वर्षा जल संचयन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वर्षा के पानी को विभिन्न प्राकृतिक या मानव निर्मित जलग्रहण क्षेत्रों (जैसे छतें, पहाड़ी ढलान, चट्टानी सतहें) से इकट्ठा और संग्रहीत किया जाता है। इस पानी का उपयोग तुरंत सिंचाई के लिए या बाद में तालाबों या जलभृतों में भंडारण करके किया जा सकता है। सरल शब्दों में, यह वर्षा का प्रत्यक्ष जमाव है जिसे कृत्रिम प्रणालियों द्वारा फिल्टर, संग्रहित और विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है।

जल संचयन तकनीकें: यह क्यों महत्वपूर्ण है?
वर्षा जल संचयन के कई महत्वपूर्ण कारण हैं:

  1. घरेलू उपयोग: फिल्ट्रेशन के बाद पीने और बगीचों में पानी देने के लिए।

  2. सिंचाई: विशेष रूप से शुष्क भूमि खेती के लिए।

  3. भूजल पुनर्भरण: इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।

  4. शहरी प्रबंधन: सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का भार, शहरी बाढ़ और तूफानी जल निर्वहन को कम करता है, तथा सतही जल को प्रदूषण से बचाता है।

  5. तटीय संरक्षण: खारे पानी के प्रवाह को कम करता है।

  6. लागत-प्रभावी: अन्य शुद्धिकरण या पंपिंग विधियों की तुलना में सस्ता और उच्च गुणवत्ता वाला पानी सुनिश्चित करता है।

  7. भूजल निर्भरता में कमी: जलभृत की उत्पादकता बढ़ाकर भूजल स्तर को बढ़ाता है।

वर्षा जल संचयन: लाभ

  • सुलभ और नवीकरणीय जल संसाधन।

  • शहरी बाढ़ को कम करता है।

  • मिट्टी के कटाव को रोकता है।

  • पानी बचाने का किफायती तरीका।

  • श्रम गहन नहीं है।

वर्षा जल संचयन: नुकसान

  • उचित उपचार के बिना पानी पीने योग्य नहीं होता।

  • लंबे समय तक सूखे वाले क्षेत्रों में अनुपयुक्त।

  • भंडारण सुविधाओं के उचित रखरखाव की आवश्यकता होती है, अन्यथा पानी दूषित हो सकता है और कीड़ों के प्रजनन स्थल बन सकते हैं।

  • प्रारंभिक सेटअप लागत अधिक हो सकती है।

  • उपज वर्षा पर निर्भर करती है और मौसमी रूप से भिन्न होती है।

वर्षा जल संचयन तकनीकें
मुख्य रूप से दो तकनीकों का उपयोग किया जाता है:

  1. सतही अपवाह संचयन: महानगरीय क्षेत्रों में वर्षा के दौरान जमीन से बहने वाले पानी को एकत्र कर विशेष जल भंडारण स्थानों (तालाब, टैंक, जलाशय) में जमा किया जाता है।

  2. छत वर्षा जल संचयन: घरों या स्कूलों की छतों से वर्षा जल एकत्र कर टैंकों में संग्रहित किया जाता है या कृत्रिम रिचार्ज प्रणाली में स्थानांतरित किया जाता है। इसका उपयोग शौचालय, कपड़े धोने, बागवानी आदि के लिए किया जा सकता है।

छत वर्षा जल संचयन तकनीक (विस्तृत)

  • प्रत्यक्ष उपयोग भंडारण: छत के पानी को भंडारण टैंक में निर्देशित किया जाता है। इसमें फिल्टर, फर्स्ट फ्लश डिवाइस और मेश फिल्टर का उपयोग होता है। अतिरिक्त पानी को रिचार्ज सिस्टम में भेजा जा सकता है।

  • भूजल जलभृत पुनर्भरण: विभिन्न संरचनाओं का उपयोग करके पानी को जमीन में रिसने दिया जाता है:

    • बोरवेल की पुनःपूर्ति: फिल्टर किए गए पानी को बोरवेल में डालकर गहरे जलभृतों को रिचार्ज करना।

    • खोदे गए कुओं को भरना: फिल्टर किए गए छत के पानी को खोदे गए कुओं में निर्देशित करना।

    • गड्ढों को भरना (रिचार्ज पिट): छोटे गड्ढे बनाकर, जिनमें फिल्टर मीडिया होता है, उथले जलभृतों को रिचार्ज करना।

    • रिचार्ज के लिए खाई: उथली अपारगम्य मिट्टी वाले क्षेत्रों में खाई खोदकर झरझरा सामग्री से भरना।

    • रिचार्ज या सोखअवे शाफ्ट: कम झरझरा ऊपरी मिट्टी वाले क्षेत्रों में 10-15 मीटर गहरे छेद बनाकर पानी को रिसने देना।

    • रिसाव टैंक (परकोलेशन टैंक): बड़े परिसरों में मानव निर्मित तालाब बनाकर भूजल पुनर्भरण करना।

छत वर्षा जल संचयन घटक

  1. जलग्रहण क्षेत्र: वह सतह (छत, आंगन) जो सीधे वर्षा प्राप्त करती है।

  2. परिवहन: पानी के पाइप या नालियां जो पानी को संग्रह प्रणाली तक ले जाती हैं।

  3. पहला फ्लश: पहली बौछार के दूषित पानी को निकालने की व्यवस्था।

  4. फिल्टर: पानी को साफ करने और भूजल संदूषण को रोकने के लिए।

भारत में वर्षा जल संचयन
भारत में जल राज्य का विषय है, लेकिन केंद्र सरकार तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करती है। प्रमुख पहलें:

  • जल शक्ति अभियान (2019): जल संकट वाले जिलों में जल संरक्षण को बढ़ावा।

  • जल शक्ति अभियान: कैच द रेन-2022: देश के सभी जिलों में जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन।

  • अन्य योजनाएं: राष्ट्रीय जल नीति, अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (AMRUT), और अटल भूजल योजना भी वर्षा जल संचयन पर ध्यान केंद्रित करती हैं।

यह लेख वर्षा जल संचयन के विभिन्न पहलुओं को कवर करता है, जिससे इसकी समग्र समझ मिलती है।

  दही-हांडी

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