तटीय शहरों में बाढ़ का खतरा

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शहरी बाढ़ पर इश्यू ब्रीफ का सारांश

यह इश्यू ब्रीफ भारत और वैश्विक स्तर पर शहरी बाढ़ की गंभीर समस्या की पड़ताल करता है, इसके कारणों का विश्लेषण करता है और इससे निपटने के लिए नीतिगत उपायों की सिफारिश करता है।

समस्या का स्वरूप:
शहरी बाढ़ तब होती है जब अत्यधिक वर्षा, तेजी से बर्फ पिघलने, चक्रवात या सुनामी जैसी घटनाओं के कारण शहर में भारी मात्रा में पानी जमा हो जाता है, जिससे शहर या उसके हिस्से जलमग्न हो जाते हैं और मौजूदा बुनियादी ढांचा पानी निकालने में असमर्थ साबित होता है। जलवायु परिवर्तन ने इस समस्या को और बढ़ाया है, जिससे भारी बारिश, नदियों का अतिप्रवाह और तूफान आम हो गए हैं। भारत में मुंबई, हैदराबाद, चेन्नई, बेंगलुरु जैसे बड़े शहर और कई छोटे शहर नियमित रूप से बाढ़ का सामना कर रहे हैं। 2005 की मुंबई बाढ़ एक निर्णायक मोड़ थी, जिसके बाद राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने शहरी बाढ़ को एक अलग आपदा के रूप में मान्यता दी और इसके प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश जारी किए। वैश्विक स्तर पर भी न्यूयॉर्क, बीजिंग और लीबिया के डेरना जैसे शहर विनाशकारी बाढ़ का सामना कर चुके हैं। IPCC की रिपोर्टें भी ग्लोबल वार्मिंग के कारण दक्षिण एशिया में मानसून की भारी वर्षा में वृद्धि की चेतावनी देती हैं, जिससे जान-माल, आजीविका और बुनियादी ढांचे को गंभीर खतरा है।

शहरी बाढ़ के कारण:

  1. प्राकृतिक कारण: अत्यधिक वर्षा, तेजी से बर्फ पिघलना, चक्रवाती तूफान।

  2. जलवायु परिवर्तन: वर्षा की घटनाओं की तीव्रता और आवृत्ति में वृद्धि।

  3. अनियोजित शहरीकरण:

    • जल निकायों (झीलों, तालाबों, नदियों के किनारे) पर अतिक्रमण और उनका सिकुड़ना या गायब होना।

    • गरीबों के लिए आवास की कमी, जिससे वे असुरक्षित क्षेत्रों में बसने को मजबूर होते हैं।

  4. खराब शासन प्रणाली:

    • शहरी स्थानीय निकायों की जिम्मेदारियों में कटौती और विभिन्न सेवाओं के लिए कई एजेंसियों का गठन, जिससे समन्वय का अभाव होता है (जैसे बेंगलुरु का उदाहरण)।

  5. बुनियादी ढांचे की समस्याएं:

    • अपर्याप्त और खराब रखरखाव वाली जल निकासी प्रणालियाँ जो शहर के विकास के साथ तालमेल नहीं रख पातीं।

    • ठोस अपशिष्ट का कुप्रबंधन, जिससे नालियां अवरुद्ध हो जाती हैं।

    • यातायात के लिए नालों को कंक्रीट से ढकना, जिससे उनकी क्षमता और रखरखाव प्रभावित होता है।

    • खुले स्थानों का कंक्रीटीकरण, जिससे पानी के जमीन में रिसने की क्षमता कम हो जाती है।

  6. अनाधिकृत निर्माण: बिल्डरों द्वारा सार्वजनिक भूमि और जल निकायों पर कब्जा।

  7. अत्यधिक जनसंख्या घनत्व: सीमित संसाधनों और खुले स्थानों पर दबाव।

संभावित समाधान:

  1. संस्थागत और नीतिगत उपाय:

    • NDMA के आपदा प्रबंधन ढांचे का प्रभावी कार्यान्वयन।

    • राज्यों, केंद्र और विभिन्न एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय।

    • आपदा-पूर्व योजना पर अधिक ध्यान और जलवायु परिवर्तन से बचाव को आपदा जोखिम प्रबंधन का हिस्सा बनाना।

    • 2005 की मुंबई बाढ़ के बाद गठित समिति की सिफारिशों (जैसे, बहु-हितधारक आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, समोच्च मानचित्रण, जल निकासी नेटवर्क का सर्वेक्षण और सुधार, अतिक्रमण हटाना, प्लास्टिक पर प्रतिबंध) को अन्य शहरों में अपनाना।

    • शहरी विकास में केंद्र सरकार की सक्रिय भूमिका, विशेषकर शहरों की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने में।

  2. शहरी नियोजन और प्रबंधन:

    • शहरों द्वारा अपनी वास्तविकताओं के आधार पर जलवायु कार्य योजनाएं (CAPs) तैयार करना और उन्हें वार्षिक बजट में शामिल कर क्रियान्वित करना (जैसे मुंबई नगर निगम का CAP)।

    • CAPs की निगरानी के लिए ‘जलवायु प्रकोष्ठ’ का गठन और इसे वैधानिक दायित्व बनाना।

    • स्थानीय विकास नीतियों में आपदा जोखिम में कमी को शामिल करना।

  3. तकनीकी और संरचनात्मक उपाय:

    • निर्माण नियमों को कड़ा करना ताकि पारगम्यता सुनिश्चित हो सके।

    • छत पर वर्षा जल संचयन टैंकों का अनिवार्य उपयोग।

    • नवीन विधियाँ जैसे ग्रीन रूफ, इन्फिल्ट्रेशन बेड (पानी को भूमिगत पाइपों से जमीन में पहुंचाना)।

    • जल निरोध/धारण तालाबों का निर्माण (हांगकांग का ताई हैंग स्टॉर्म वाटर स्टोरेज टैंक उदाहरण)।

    • पारगम्य फुटपाथों का उपयोग।

  4. जनसंख्या और विकास:

    • शहरों के अत्यधिक घनत्व को रोकने के लिए राष्ट्रीय नीति बनाना।

    • छोटे शहरों में निवेश और विकास को बढ़ावा देना ताकि बड़े शहरों पर दबाव कम हो।

  5. नागरिक जागरूकता और शिक्षा:

    • नागरिकों में आपदा जोखिम कम करने के व्यवहार को विकसित करने के लिए व्यापक शिक्षा कार्यक्रम।

निष्कर्ष:
भारत को अपने शहरों के अनियंत्रित घनत्व को नियंत्रित करने, छोटे शहरों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने और नागरिकों को आपदा जोखिम न्यूनीकरण के प्रति शिक्षित और प्रेरित करने की तत्काल आवश्यकता है ताकि शहरी बाढ़ की चुनौती का प्रभावी ढंग से सामना किया जा सके।

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