इस्पात निर्माण

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फौलादी भारत का सुनहरा भविष्य: 2030 तक इस्पात उत्पादन दोगुना, टिकाऊ विकास पर ज़ोर!

‘ISA इस्पात कॉन्क्लेव 2023’ के चौथे संस्करण में भारत के इस्पात उद्योग के भविष्य की एक महत्त्वाकांक्षी तस्वीर पेश की गई। इस प्रतिष्ठित आयोजन का मुख्य केंद्र बिंदु वर्ष 2030 तक देश के इस्पात उत्पादन को दोगुना कर 300 मिलियन टन प्रति वर्ष के विशाल आँकड़े तक पहुँचाना रहा। कॉन्क्लेव ने इस्पात कंपनियों को अपनी क्षमता विस्तार के लिए प्रेरित किया और ‘स्टील शेपिंग द सस्टेनेबल फ्यूचर’ (इस्पात से सतत भविष्य का निर्माण) विषय के तहत भारत के विकास में इस्पात उद्योग की बहुआयामी भूमिका पर गहन मंथन किया।

वर्तमान में भारत की इस्पात शक्ति:

भारत आज कच्चे इस्पात के उत्पादन में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है। वित्त वर्ष 2023 में देश ने 125.32 मिलियन टन कच्चे इस्पात और 121.29 मिलियन टन उपयोग के लिए तैयार इस्पात का उत्पादन किया। यह आँकड़े पिछले एक दशक में इस्पात उद्योग की शानदार प्रगति को दर्शाते हैं, जिसमें वर्ष 2008 के बाद से उत्पादन में 75% की प्रभावशाली वृद्धि दर्ज की गई है। लौह अयस्क जैसे कच्चे माल की प्रचुर उपलब्धता और कुशल एवं लागत प्रभावी श्रमबल भारत के इस्पात उद्योग की नींव रहे हैं। हालांकि, वित्त वर्ष 2023 में भारत में इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत 86.7 किलोग्राम रही, जिसे बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं।

महत्वाकांक्षी लक्ष्य और महत्त्व:

राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 के तहत, भारत ने वर्ष 2030-31 तक कच्चे इस्पात की क्षमता को 300 मिलियन टन, उत्पादन को 255 मिलियन टन और प्रति व्यक्ति तैयार इस्पात की खपत को 158 किलोग्राम तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा है। इस्पात उद्योग न केवल निर्माण, बुनियादी ढाँचे, ऑटोमोबाइल, और इंजीनियरिंग जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की रीढ़ है, बल्कि रक्षा क्षेत्र में भी इसकी अहम भूमिका है। वित्त वर्ष 21-22 में इसने देश की GDP में लगभग 2% का योगदान दिया, जो इसकी आर्थिक महत्ता को रेखांकित करता है।

चुनौतियाँ जिन्हें अवसरों में बदलने की क्षमता:

इस महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य की राह में कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जिन्हें अवसरों में बदलने की जरूरत है:

  1. निवेश और लागत: आधुनिक इस्पात संयंत्रों की स्थापना के लिए भारी निवेश और महँगे वित्तपोषण उत्पादन लागत को बढ़ाते हैं, जिससे वैश्विक प्रतिस्पर्धा प्रभावित होती है।

  2. चक्रीय मांग: इस्पात की मांग में मौसमी उतार-चढ़ाव, विशेषकर मानसून के दौरान निर्माण कार्यों में सुस्ती, वित्तीय दबाव पैदा करते हैं।

  3. कम प्रति व्यक्ति खपत: वैश्विक औसत (233 किलोग्राम) की तुलना में भारत की कम प्रति व्यक्ति खपत (86.7 किलोग्राम) को बढ़ाना एक प्रमुख लक्ष्य है।

  4. प्रौद्योगिकी और नवाचार: अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाकर और नवीन तकनीकों को अपनाकर पुरानी व प्रदूषणकारी प्रौद्योगिकियों से निजात पाना आवश्यक है।

  5. निर्माण में इस्पात का कम उपयोग: पारंपरिक कंक्रीट-आधारित निर्माण विधियों के स्थान पर इस्पात के उपयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

  6. पर्यावरणीय चिंताएँ और CBAM: इस्पात उद्योग को अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने और यूरोपीय संघ के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) जैसी अंतर्राष्ट्रीय नीतियों के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है, जो भारतीय निर्यात को प्रभावित कर सकता है।

सरकार के सक्रिय प्रयास:

केंद्र सरकार इस्पात क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठा रही है, जिनमें राष्ट्रीय इस्पात नीति (NSP) 2017, इस्पात स्क्रैप पुनर्चक्रण नीति, उद्योग 4.0 को अपनाना, भारत का इस्पात अनुसंधान और प्रौद्योगिकी मिशन, ड्राफ्ट फ्रेमवर्क नीति और स्पेशियालिटी स्टील के लिए PLI योजना शामिल हैं।

भविष्य की राह: समाधान और संभावनाएं

  1. हरित इस्पात पर जोर: पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश और उन्हें अपनाना सर्वोपरि है। ग्रीन स्टील (विद्युत, हाइड्रोजन, कोयला गैसीकरण जैसे कम कार्बन ऊर्जा स्रोतों से निर्मित) उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

  2. कार्बन दक्षता: CBAM के प्रभाव को कम करने के लिए इस्पात उत्पादन में कार्बन दक्षता बढ़ाना और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाना महत्वपूर्ण होगा।

  3. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: CBAM जैसे नियमों पर न्यायसंगत समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय संवाद और सहयोग आवश्यक है।

  4. घरेलू खपत में वृद्धि: निर्माण, ऑटोमोबाइल और इंफ्रास्ट्रक्चर में इस्पात के उपयोग को बढ़ाकर घरेलू मांग को मजबूत करना।

  5. नवाचार और अनुसंधान: अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाकर आत्मनिर्भरता हासिल करना और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनना।

निष्कर्ष:

‘ISA इस्पात कॉन्क्लेव 2023’ ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत का इस्पात उद्योग एक रोमांचक मोड़ पर है। चुनौतियों के बावजूद, सरकार की सक्रिय नीतियों, उद्योग के दृढ़ संकल्प और तकनीकी नवाचारों के बल पर भारत न केवल अपने उत्पादन लक्ष्यों को प्राप्त करने की ओर अग्रसर है, बल्कि एक स्थायी और आत्मनिर्भर भविष्य के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है। यह फौलादी इरादा निश्चित रूप से देश को विकास की नई ऊँचाइयों पर ले जाएगा।

  राजस्थान

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